जलवायु परिवर्तन और इसका प्रभाव

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जलवायु परिवर्तन ऐसे तो 1970 के आसपास वैज्ञानिकों को इसके बारे में पता चला लेकिन बहुत सी खामियां होने के कारण जनता बहुत कम इसके बारे में बताया गया और आज 2021 में यहां इस कदर हो चुका है की इसका असर प्राकृतिक तौर पर तो है ही साथ में जानवरों की प्रजाति पर भी इसका बहुत गहरा असर पड़ा है   आज इसका सीधा असर पड़ा है  इंसानों पर प्राकृतिक तौर पर तापमान बढ़ने से हो रहा है जिसमें धरती पर सभी जीव जंतु आते हैं अगर सीधे तौर पर बात करें तो जानवरों पर इनके प्रजनन क्षमता पर बहुत असर पड़ रहा है जिसका सीधा मतलब यह है कि अगर तापमान ज्यादा बढ़ता है या बढ़ता रहेगा तो जानवरों की आदि प्रजातियों की प्रजनन क्षमता पर बहुत असर पड़ता है जिससे जानवरों कीट पक्षी जलचर आदि पर यह सर ऐसे दिखता है तापमान बढ़ने का की कछुआ जो समुद्र में रहता है उस पर तापमान गरम और  ठंडे रहने से उनके मादा और नर के प्रजनन पर असर पड़ता है अगर ठंडे ठंडे रहते हैं तो नर कछुए पैदा होते हैं और अगर अंडे गर्म रहेंगे तो मादा कछुए ज्यादा पैदा होगी इसी तरीके से इनका असर कीटो आदि पर बहुत गहरा असर पड़ता है जिससे आने वाले समय में कुछ जीव जंतु जलचर कीट आ

भूजल दोहन के कारण दुनिया भर में क्या जमीन धंस रही है ?

एक #अध्ययन में अभी यह पाया गया है कि #दुनिया में #भूजल के अंधाधुन दोहन के कारण वश दुनिया भर में #पृथ्वीग्रह की जमीन  दब रही है यह अध्ययन अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट आफ साइंस द्वारा किया गया है शोध के परिणाम काफी जॉब आने वाले हैं जो भी दुनिया के संभावित भूमि दशाव और क्षेत्रों में चयनित 7,343 प्रमुख शहरों में से 1,596 शहरों मतलब 22% सैंपल शहरों के अध्ययन के आधार पर है 

अगर हम बात करें धरती के जल के अत्यधिक दोहन की तो  उसमें कृषि सबसे आगे और यह वही धरती है जिसे ऐसे बीजों पर निर्भर रहना पड़ता है जिन से अधिक उत्पादन लेने के लिए रात दिन किसान ट्यूबेल से धरती का पानी निकालते रहते हैं या निकला जाता है जबकि हम जानते हैं भूजल अनमोल है और पृथ्वी एक ग्रह है जिसमें कि 70 प्रतिशत भाग पर जल पाया जाता है और उसमें भी 2.5%  स्वच्छ जल पीने के लिए पाया जाता है और यही जल फसलों की सिंचाई में काम आता है 


और चौंकाने वाली बात यह है कि इस 2.5% #स्वच्छजल जो पीने वाला जल है उसका 72% जो पेयजल है वह हमारी आधुनिक कृषि ही पी जाती है और यह वह कृषि जो #हरितक्रांति के अडानी आदानो पर अवलंबित है #पानी की कमी समय में एक बहुत बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा है हर राष्ट्रों का आज देश के कई प्रदेश और #राजधानी #दिल्ली सहित देश के बड़े-बड़े #महानगर #जलसंकट से जूझ रहे हैं और यह जल संकट इतना विकराल है कि आने वाले समय में आदमी को खाद्य सुरक्षा तो मिल जाएगी परंतु जल सुरक्षा तो बिल्कुल नहीं है मतलब  यह सीधा है की हरित क्रांति से उपजी राष्ट्रीय #खाद्यसुरक्षा आपको #जलसुरक्षा की कीमत पर है तभी आप को खाद्य सुरक्षा मिलेगी और नीति आयोग के अनुसार सुनिए- #भूजल स्थिति वाले शहरों की संख्या बढ़ रही है! अगर हम बात करें मनुष्य जीवन की तो हमारा सारा खान पान किसी से मिलने वाले उत्पादों पर ही निर्भर है और आश्चर्य की बात यह है कि प्रत्येक उत्पाद की कीमत हमें पानी से चुकानी पड़ती है और गेहूं और धान हमारी दो प्रमुख फसलें हैं जिसमें धरती का सर्वाधिक क्षेत्र आता है !


 एक किलो गेहूं पैदा करने के लिए लगभग पंद्रह सौ लीटर और  एक किलो चावल पैदा करने में 2497 लीटर पानी की खपत होती है और वही अगर हम बात करें  गन्ने की फसल की तो एक क्विंटल गन्ना पैदा करने में डेढ़ से  300000 लाख लीटर पानी खप जाता है गन्ने की फसल में और वही अगर हम बात करें पारंपरिक खेती जो लगभग पूरे देश के क्षेत्रों में किसान करते हैं जो कि पानी के लिए लालायित रहते हैं लेकिन उन्हें पानी नहीं मिलता और फिर भी पूरे देश के अधिकतर भूभाग में व #पारंपरिकबीज उगाए जाते हैं और उनकी फसलें उग रही है जैसे बटुआ झकोरा बाजरा ज्वार जैसे मोटे अनाज और रामदाना मतलब जुलाई आदि जैसी फसलें जिन्हें आज भी देश के अधिकतर #भूभागक्षेत्र में पारंपरिक खेती के माध्यम से उगाया जाता रहा है और जिन्हें यूं कहें कि ने बिना सिंचाई के पैदा किया जा सकता है गेहूं और धान की अनेक ऐसी पारंपरिक प्रजातियां हैं

 जिन्हें उखड़ खेती या उखड़ी भूमि पर उगाया जा सकता है और #उत्तराखंड #हिमाचल #प्रदेश के #ऊंचेपहाड़ीक्षेत्रों में बिना सिंचाई की खेती के कई उदाहरण हैं और #हिमालयराज्य क्षेत्रों में इस तरीके की पारंपरिक खेती सदियों से होती आ रही है और इसी वजह से कई राज्यों की सरकारें दलहन और तिलहन की खेती को बढ़ावा दे रही है ताकि आज और भविष्य में पानी को बचाया जा सके मगर हमारी कृषि नीति में भूजल भंडार के संरक्षण और न्यूनतम पानी वाली फसलों और सूखे में भी पैदावार देने वाली बीजों आदि के बारे में कोई चिंतन मनन नहीं होता है और वही किसान नेता भी इन मुद्दों को अपने आसपास तक नहीं भटकने देते हैं आज देश में लगभग 8 करोड लोगों को पीने का पानी तक आसानी से सुलभ नहीं हो पाता है और तब खेती का मुंह पानी के लिए खोल देना कहां का न्याय है ? देश में खाद्य सुरक्षा पर तो बहुत व्याख्यान होते हैं चिंतन होता है और नीतियां बनती है #समाज  में #जलसुरक्षा पर कम बात होती है समाज में क्या एक संपोषित #खाद्यसुरक्षा जल सुरक्षा के बिना हो सकती हैं ?

-Note- AmarUjala news

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