विकासनगर देहरादून जिले का एक महत्वपूर्ण शहर

Image
  विकासनगर देहरादून जिले का एक महत्वपूर्ण शहर है , जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और विकासशील बुनियादी ढांचे के लिए जाना जाता है। यह शहर देहरादून से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित है और उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के करीब होने के कारण यह एक प्रमुख आवासीय और औद्योगिक केंद्र बनता जा रहा है। विकासनगर की अनुमानित जनसंख्या 2030 तक लगभग 1 लाख होने की संभावना है, जो इसके तेजी से विकास और शहरीकरण को दर्शाता है। इस शहर में कई आवासीय सोसाइटीज और औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो रहे हैं, जो इसकी आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं। *विकासनगर के प्रमुख पहलू:* - *भौगोलिक स्थिति*: विकासनगर देहरादून जिले में स्थित है, जो उत्तराखंड की राजधानी है। - *विकास*: शहर में तेजी से विकास हो रहा है, जिसमें आवासीय और औद्योगिक क्षेत्र शामिल हैं। - *जनसंख्या*: 2030 तक जनसंख्या लगभग 1 लाख होने की संभावना है। - *शिक्षा और स्वास्थ्य*: शहर में कई शिक्षण संस्थान और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। - *परिवहन*: विकासनगर देहरादून और अन्य निकटवर्ती शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। विकासनगर का विकास और इसकी बढ़ती जनसंख्...

भूजल दोहन के कारण दुनिया भर में क्या जमीन धंस रही है ?

एक #अध्ययन में अभी यह पाया गया है कि #दुनिया में #भूजल के अंधाधुन दोहन के कारण वश दुनिया भर में #पृथ्वीग्रह की जमीन  दब रही है यह अध्ययन अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट आफ साइंस द्वारा किया गया है शोध के परिणाम काफी जॉब आने वाले हैं जो भी दुनिया के संभावित भूमि दशाव और क्षेत्रों में चयनित 7,343 प्रमुख शहरों में से 1,596 शहरों मतलब 22% सैंपल शहरों के अध्ययन के आधार पर है 

अगर हम बात करें धरती के जल के अत्यधिक दोहन की तो  उसमें कृषि सबसे आगे और यह वही धरती है जिसे ऐसे बीजों पर निर्भर रहना पड़ता है जिन से अधिक उत्पादन लेने के लिए रात दिन किसान ट्यूबेल से धरती का पानी निकालते रहते हैं या निकला जाता है जबकि हम जानते हैं भूजल अनमोल है और पृथ्वी एक ग्रह है जिसमें कि 70 प्रतिशत भाग पर जल पाया जाता है और उसमें भी 2.5%  स्वच्छ जल पीने के लिए पाया जाता है और यही जल फसलों की सिंचाई में काम आता है 


और चौंकाने वाली बात यह है कि इस 2.5% #स्वच्छजल जो पीने वाला जल है उसका 72% जो पेयजल है वह हमारी आधुनिक कृषि ही पी जाती है और यह वह कृषि जो #हरितक्रांति के अडानी आदानो पर अवलंबित है #पानी की कमी समय में एक बहुत बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा है हर राष्ट्रों का आज देश के कई प्रदेश और #राजधानी #दिल्ली सहित देश के बड़े-बड़े #महानगर #जलसंकट से जूझ रहे हैं और यह जल संकट इतना विकराल है कि आने वाले समय में आदमी को खाद्य सुरक्षा तो मिल जाएगी परंतु जल सुरक्षा तो बिल्कुल नहीं है मतलब  यह सीधा है की हरित क्रांति से उपजी राष्ट्रीय #खाद्यसुरक्षा आपको #जलसुरक्षा की कीमत पर है तभी आप को खाद्य सुरक्षा मिलेगी और नीति आयोग के अनुसार सुनिए- #भूजल स्थिति वाले शहरों की संख्या बढ़ रही है! अगर हम बात करें मनुष्य जीवन की तो हमारा सारा खान पान किसी से मिलने वाले उत्पादों पर ही निर्भर है और आश्चर्य की बात यह है कि प्रत्येक उत्पाद की कीमत हमें पानी से चुकानी पड़ती है और गेहूं और धान हमारी दो प्रमुख फसलें हैं जिसमें धरती का सर्वाधिक क्षेत्र आता है !


 एक किलो गेहूं पैदा करने के लिए लगभग पंद्रह सौ लीटर और  एक किलो चावल पैदा करने में 2497 लीटर पानी की खपत होती है और वही अगर हम बात करें  गन्ने की फसल की तो एक क्विंटल गन्ना पैदा करने में डेढ़ से  300000 लाख लीटर पानी खप जाता है गन्ने की फसल में और वही अगर हम बात करें पारंपरिक खेती जो लगभग पूरे देश के क्षेत्रों में किसान करते हैं जो कि पानी के लिए लालायित रहते हैं लेकिन उन्हें पानी नहीं मिलता और फिर भी पूरे देश के अधिकतर भूभाग में व #पारंपरिकबीज उगाए जाते हैं और उनकी फसलें उग रही है जैसे बटुआ झकोरा बाजरा ज्वार जैसे मोटे अनाज और रामदाना मतलब जुलाई आदि जैसी फसलें जिन्हें आज भी देश के अधिकतर #भूभागक्षेत्र में पारंपरिक खेती के माध्यम से उगाया जाता रहा है और जिन्हें यूं कहें कि ने बिना सिंचाई के पैदा किया जा सकता है गेहूं और धान की अनेक ऐसी पारंपरिक प्रजातियां हैं

 जिन्हें उखड़ खेती या उखड़ी भूमि पर उगाया जा सकता है और #उत्तराखंड #हिमाचल #प्रदेश के #ऊंचेपहाड़ीक्षेत्रों में बिना सिंचाई की खेती के कई उदाहरण हैं और #हिमालयराज्य क्षेत्रों में इस तरीके की पारंपरिक खेती सदियों से होती आ रही है और इसी वजह से कई राज्यों की सरकारें दलहन और तिलहन की खेती को बढ़ावा दे रही है ताकि आज और भविष्य में पानी को बचाया जा सके मगर हमारी कृषि नीति में भूजल भंडार के संरक्षण और न्यूनतम पानी वाली फसलों और सूखे में भी पैदावार देने वाली बीजों आदि के बारे में कोई चिंतन मनन नहीं होता है और वही किसान नेता भी इन मुद्दों को अपने आसपास तक नहीं भटकने देते हैं आज देश में लगभग 8 करोड लोगों को पीने का पानी तक आसानी से सुलभ नहीं हो पाता है और तब खेती का मुंह पानी के लिए खोल देना कहां का न्याय है ? देश में खाद्य सुरक्षा पर तो बहुत व्याख्यान होते हैं चिंतन होता है और नीतियां बनती है #समाज  में #जलसुरक्षा पर कम बात होती है समाज में क्या एक संपोषित #खाद्यसुरक्षा जल सुरक्षा के बिना हो सकती हैं ?

-Note- AmarUjala news

Comments

Popular posts from this blog

जलवायु परिवर्तन और इसका प्रभाव

क्या भारत में 100 स्मार्ट सिटी शहर पर्यटन को बढ़ाएगे ?

Jonsar Bawar Adventure Tourism